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Raashi Shah

Others

5.0  

Raashi Shah

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मैं जहाँ रहती हूँ

मैं जहाँ रहती हूँ

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जहाँ हार कर भी,

जीत का एहसास हो,

देश​-विदेश घूमने से भी बेहतर​,

लगे पूरी दुनिया है मेरे पास​।

जब जग की समस्त ख़ुशियाँ,

यहाँ लगे,

है मेरे ही पास​,

हर लम्हा,

लगने लगे खास​।


जहाँ जन्म लिया,

और संपूर्ण जीवन जीया,

उसे चाह कर भी,

कैसे जाए भुला दिया?

जिसे मैं कहूँ,

अपना ‘घर',

क्या फ़र्क पड़ता है,

कोई कह दे इसे,

निकेतन​, निवास​, आलय या गृह अगर​?


जहाँ जन्म से मृत्यु,

संपूर्ण जीवन बिताते हैं,

यहाँ रहने, और यहाँ के

लोगों(अपने परिवार​) से कुछ कहने में,

हम बिलकुल नहीं हिचकिचाते है।

जहाँ हर सफलता के,

जश्न मनाए,

और प्रत्येक पराजय के लिए,

रोए है,

यहाँ क​ई नन्हें सदस्यों ने,

ख़ुशियाँ फैलाई,

तो क​ईओं को,

यहीं पर खोए है।

ऐसा मेरा घर है कितना प्यारा,

मेरी हर खुशी,

हर ग़म का राज़​,

इसने संभाला है,

अपनी उस मज़बूत छत के नीचे,

मुझे पाला है।


अपनी छोटी-छोटी आँखों से,

मेरे हर रूप देखे हैं,

अपने अंदर​,

मेरी ख़्वाइशें, आदतें, शौक,

खूबियाँ, कमज़ोरियाँ,

सब कुछ संचय करके,

जैसे मुझे ही समेटा है अपने भीतर​,

यहाँ लगता है मुझे बहुत महफूज़ ​,

ना कोई घबराहट​, फ़िक्र​, ग़म​,

परेशानी या डर​।

गर्व से कहूँ मैं इसे, अपना प्यारा घर​!



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