मैं और तुम
मैं और तुम
मैं जिंदगी के इम्तिहान में पास होने की
कोशिश करती रही
तुम फेल पर फेल करते रहें।
जब कभी दो घड़ी विश्राम के लिए
रूकी जिंदगी
तुम झुक-झुक रेल करते रहे।
सुकूं से दो पल जीने की कोशिश करती रही
तुम जज्बातों से खेलने के खेल रचते रहें।
जिंदगी के बिखरे मोतियों को
समेटने की कोशिश करती रही
तुम उन्हें एक सूत्र में पिरोने से परहेज करते रहे।
हर दम बिछी थी जिंदगी तुम्हारे कदमों में
तुम गले लगाने का फरेब करते रहे।
रूठ कर बिखर गई थी जिंदगी की साँसें
तुम केवल मैं-मैं का जाप करते रहे।
