मैं और मेरी कलम...
मैं और मेरी कलम...
एक ज़माने से
तेरी जिंदगी के दरख़्त
कविता को
तेरे साथ रह कर देखा है
फूलते, फलते और फैलते..
और जब
तेरी जिंदगी का दरख़्त
बीज बनना शुरू हो गया
मेरे अंदर जैसे
कविता की पत्तियाँ फूटने लगीं
और जिस दिन तेरी जिंदगी का
दरख़्त बीज बन गया
उस रात इक कविता ने
मुझे बुला कर
अपने पास बिठाया
और अपना नाम बताया
पूजा -
जो दरख्त से बीज बन गई
मैं काग़ज ले कर आया
वह काग़ज पर अक्षर अक्षर हो गई
अब कविता अक्सर आने लगी है
तेरी शक्ल में तेरी ही तरह मुझे देखती
और कुछ समय मेरे संग हम कलाम हो कर
मेरे अंदर कहीं गुम हो जाती है..