मैं आज भी तुम्हारी माँ होती
मैं आज भी तुम्हारी माँ होती
तुम्हारे लिए ही
इन्ही हाथो से
दर दर मन्नते मांगी
तुम्हारे लिए ही
इन्हीं हाथों से
अंगारे उठाएं
तुम्हारे लिए ही
इन्ही हाथो से
मन्दिर में फूल
माला थे चढ़ाये
तुम्हारे लिए ही
कई दिनों तक
बिन खाये ही थे
मुस्कुराये
तुम्हारे लिए ही
मैंने कितने थे
दीपक जलाये
तुम्हारे लिए ही
इन्हीं हाथों से
हर विपदा से
थे टकराये
तुम्हारे लिए ही
इन आँखों से
ममता के आँसू
थे ढरकाए
तुम्हारे लिए ही
अपने कदमों को
कभी पीछे कभी
थे आगे बढ़ाये
तुम्हारे लिए ही
इन्हीं हाथों से दी
मौत को शिकस्त
तुम्हारे लिए ही कितनी
रातो को नींद को
कर दी थी परास्त
पर ये हाथ आज
बहुत कामजोर
लाचार, असहाय
लगने लगे खुद को
कभी जब तेरे
कदम लड़खाते थे
झट दौड़ पड़ती थी
तुझे थामने को
तू भी तो झट मेरे हाथों
को पकड़ क्र ख़ुशी से
हँसने लगता था
आज मेरे कदम
लड़खड़ाने पर
तुझे बहुत
ग्लानि होती है
मेरे तन से तुझे
घृणा होती है
मुझे इस हाल में देखकर
तू नजरे फेरता है
कभी तेरा स्टेट्स
न गिरे इसलिए
मुझे घर के बाहर
रहने को भी कहता है
काश ये हाथ तुम्हारे लिए
नही उठाए होते
तुम्हे इतना महान न
बनाये होते
काश तुम्हारे लिए कभी
न हारी होती
मैं भी आज
तुम्हारी माँ होती
और कुछ नही
बस तुम्हारी माँ होती
वहीँ माँ जिसे देख
तुम कभी दौड़कर
मेरे आँचल से लिपट
कर लुका छिपी
करता था
मेरे हर कष्ट को
पल भर में हरता था
तू ही मेरा जीवन था
मैं तुम्हारी धड़कन थी
मैं तुझे फिर कभी न खोती
मैं आज भी तुम्हारी माँ होती
और कुछ न, वही माँ होती
मेरी किस्मत फिर न मुझ पर रोती
मैं भी तुम्हारी माँ होती।
