माया
माया
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माया खेले खेल, सदा पथ से भटकाती।
मोह डाल कर खूब,नाच है सदा नचाती।।
रूप रंग में फास, जाल माया फैलाती।
लगे नहीं कुछ हाथ, मोह माया कहलाती।।
पैसा माया जाल, कहे ये सब मुनि ज्ञानी।
समझे कब ये बात, बड़ा मानव अभिमानी।।