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Ashish Anand Arya

Others

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Ashish Anand Arya

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मानो... न मानो : नारी एक सुबह

मानो... न मानो : नारी एक सुबह

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रात भर आराम के बाद

मैं सुबह हो आयी हूँ!

निन्दियाये बच्चों को

अठखेलियों से जगा रही

किरणों की मानिंद

इन चेहरों पर थपकी सी गुनगुनायी हूँ!


स्नान-ध्यान के तप से गुज़र कर

हर आस की उत्तरदायी हूँ!

चाय की चहक से आरम्भ

आलिंगन के जोर तक हर्षायी हूँ...

कभी माँ, कभी बहू, कभी पत्नी

अजब, गज़ब सब रिश्तों पर निभ आयी हूँ!


द्वारों पर सजे लिहाफ़ों को हटाकर

घर-भीतर भोर हवा की तरुणाई हूँ...

नित्य-भोज की स्वतंत्र निर्माणी

मैं रसोईघर की रुबाई हूँ...

चारदीवारी भीतर सुख विश्वास में जीकर

मैं खुद कमाल हो अायी हूँ!


नित्य वंदना, प्रभु अर्चना

तारणहार को भक्ति रस की भरपाई हूँ!

जीवन की जीवट आस हूँ...

प्रसन्नता का समुचित प्रयास हूँ...

रौशनी का सूरज आसमाँ में उगते ही

मैं सुबह हो आयी हूँ!



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