माँ तेरी याद में सिसकती हूँ मै
माँ तेरी याद में सिसकती हूँ मै
मेरी रचना
की घूमने निकली थी मैं
किसी बाज़ार में तो याद आया
घर पर धनिया था या नहीं
फिर सोचा माँ ने खरीद कर
रख लिया होगा...
जो घर को आई चप्पल उतारी
तो लगा माँ आवाज़ लगाएगी
की कहाँ से घूम कर आई है
फ़क़त भीतर जाकर देखा जो
मैंने... तो देखा कि सिर्फ तन्हाई है।
देर रात तक जागूँ न तो
माँ डांट लगाएगी...
सुबह जो देरी उठने में करूँ
माँ खुद आटा गूथ आएगी
फिर बघार कर सब्जी जब धूप
मेरे सिर पर चढ़ने लगे
तो लगा कि माँ चाय का प्याला
लेकर मुझे रसोई से
आवाज़ लगाई है...
उठ कर देखा मैंने तो
क्या पता था वहाँ सिर्फ तन्हाई है...