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SURYAKANT MAJALKAR

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SURYAKANT MAJALKAR

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माँ की याद

माँ की याद

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ऊंगली पकडकर तूने चलना सिखाया।

माँ! मुझे वो दिन बहुत याद आया।


कहाँ था मेरा शब्दों से मेल ?

है खेल सारा तूने बताया।

पढ़ेगा-लिखेगा तो होगा बड़ा।

हिम्मत से समाज में होगा खड़ा।


तेरे जैसा प्यार जग में नहीं पाया।

अपनी ममता को तूने खूब लुटाया।

कभी तूने बेवजहा रोने नहीं दिया।

खुद पर यकीन करना सिखाया।


कभी तूने भूखे पेट न सुलाया।

जरुरत पर मुँह का निवाला खिलाया।

तेरे हाथ का स्वाद कभी भूल न पाया।

तेरी हँसी पर मैंने जग को लुटाया।


मेरा कर्तव्य भला मैं कैसे भूलूँ।

दूध का कर्ज मैं चुका न पाऊँ।

भगवान से यह है प्रार्थना मेरी।

हर जनम में यही माँ हो मेरी।


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