STORYMIRROR

Sheetal Jain

Children Stories

4  

Sheetal Jain

Children Stories

माँ की आस

माँ की आस

1 min
351

दिन भर कर के काम, ज़रा सा वो बैठी है।

 खिला लूँ अपने बच्चे को ,

 ममता उसकी उमड़ी है ।

 पालने को हिला रही,

  कभी टुकुर-टुकुर ताक रही ।

 न हो किंचित भी वो परेशान,

जाली से ढाँक रही।

  हर चीज़ से बेख़बर 

   बच्चा अपने स्वप्न में मग्न 

  अहसास लिए यह संग

   साथ माँ का ममत्व है ।

   माँ तो करुणा की मूर्ति 

    कोई न कर सके उसकी पूर्ति ।

   आशाओं के झूले झूल रही,

    हज़ारों सपने बुन रही ।

    लाल करेगा नाम यह रोशन,

    सपनों को न तोड़ देना कहीं 

     बिखर जाएगी,

     जो बैठी शांत ,संयत अभी ॥

   

 


Rate this content
Log in