माँ की आस
माँ की आस
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दिन भर कर के काम, ज़रा सा वो बैठी है।
खिला लूँ अपने बच्चे को ,
ममता उसकी उमड़ी है ।
पालने को हिला रही,
कभी टुकुर-टुकुर ताक रही ।
न हो किंचित भी वो परेशान,
जाली से ढाँक रही।
हर चीज़ से बेख़बर
बच्चा अपने स्वप्न में मग्न
अहसास लिए यह संग
साथ माँ का ममत्व है ।
माँ तो करुणा की मूर्ति
कोई न कर सके उसकी पूर्ति ।
आशाओं के झूले झूल रही,
हज़ारों सपने बुन रही ।
लाल करेगा नाम यह रोशन,
सपनों को न तोड़ देना कहीं
बिखर जाएगी,
जो बैठी शांत ,संयत अभी ॥
