माँ द्रोणागिरि
माँ द्रोणागिरि
टूट गिरिखण्ड जब गिरा,
लें हनुमंत द्रोणाचल तब उड़ा।
मिट्टी से मिट्टी मिली
नाम द्रोणगिरि पड़ा।
आदि शक्ति ने किया उपकार,
लिंग रूप लिया आकार
धन्यवाद है पवनपुत्र तुमको
पुण्य भागी बनाया जो हमको।
लखन जियाये के कारण
चरण पड़े यहां तुम्हारे
अनूपम निधि सुरम्य बन
माँ ने किया जो काया कंचन।
शीस झुकाये खड़ा रहे नित्य
ब्रह्मकूट पर्वत नंदन
नत मस्तक हो आभा बिखरे
हिम् किरीट विशाल अति उत्तम।
मनभावन सुगन्ध वासी
जब आउ में दर्शन को
दूर करें तुम तत्क्षण उदासी।
मेरी कुलदेवी मेरी माँ
कर मेरा कल्याण।
जन्म लिया जो मैंने तेरे
इस दिव्य धरा पे
कर चिंतन धर ध्यान
तेरा चाहता हूँ निर्वाण।