लूट लिए घर माली ने
लूट लिए घर माली ने


बागों में अब फूल कहाँ हैं, तोड़ लिए सब माली ने।
एक मूरत को खुश करने में लूट लिए घर माली ने।
तेरा मंदिर तुझे सलामत मैं भौरा आवारा हूँ।
इकलौता श्रृंगार मैं उसका फिरता मारा मारा हूँ।
वफ़ा कहूँ या खता मैं उसकी छीन लिए स्वर माली ने।
एक मूरत को खुश करने में लूट लिए घर माली ने।
पत्थर की मूरत में बेशक हृदय नहीं हो सकता है।
जिसने मेरा मरम ना जाना हरि नहीं हो सकता है।
उड़ने की ख्वाहिश थी संग संग काट लिए पर माली ने।
एक मूरत को खुश करने में लूट लिए घर माली ने।
बाग बगीचों की पीड़ा का तनिक ना तुमको भान हुआ।
बिन राधा के मोहन का वो हर लम्हा बेजान हुआ।
तड़प रहा हूँ सांसों के बिन छीन लिए धड़ माली ने।
एक मूरत को खुश करने में लूट लिए घर माली ने।
बागों में अब फूल कहाँ हैं , तोड़ लिए सब माली ने।
एक मूरत को खुश करने में लूट लिए घर माली ने।