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Amita Dash

Others

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Amita Dash

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लम्हें जिन्दगी के

लम्हें जिन्दगी के

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चांदी की गुल्लक


मेरी दादी की चांदी की गुल्लक

जो उनकी दादी की थी धरोहर

मुझे मिला था अमानत के तौर पर

आज भी मैंने रखा है सहेज कर

याद दिलाता है वो सुनहरा पल

दादी गुल्लक से तब पैसे निकालती जब हम जाते थे बाजार

मंदिर के थाली में डालने के लिए देती थी हर सोमवार

भिखारियों के लिए रखती थी गुल्लक भरकर

खाली हाथ कोई नहीं लौटते थे हमारा द्वार 

सबसे हट के था उनका वात्सल्य प्रेम बेशुमार

मेरे जन्म दिवस पर खाली होता था उनका गुल्लक

दूसरे दिन से शुरू होता था सिक्के इकट्ठा करना साल भर



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