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Dheerja Sharma

Others

4.9  

Dheerja Sharma

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लम्हे खर्च हो गए

लम्हे खर्च हो गए

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ज़िन्दगी से लम्हे चुरा

पर्स मे रखती रही

फुरसत से खरचूंगी

बस यही सोचती रही।

उधड़ती रही जेब

करती रही तुरपाई

फिसलती रही खुशियाँ

करती रही भरपाई।

इक दिन फुरसत पायी

सोचा, खुद को आज रिझाऊं

बरसों से जो जोड़े

वो लम्हे खर्च आऊं।

खोला पर्स..लम्हे न थे

जाने कहाँ रीत गए!

मैंने तो खर्चे नही

जाने कैसे बीत गए !!

फुरसत मिली थी सोचा

खुद से ही मिल आऊं।

आईने में देखा जो

पहचान ही न पाऊँ।

ध्यान से देखा

बालों पे चांदी सी चढ़ी थी,

थी तो मुझ जैसी

जाने कौन खड़ी थी।!!!.


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