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Dinesh paliwal

Others

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Dinesh paliwal

Others

।। लेखक की व्यथा ।।

।। लेखक की व्यथा ।।

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अब तो बाज़ार में, मैं बिकने लगा हूँ,

उनके मनमाफिक जो,जरा लिखने लगा हूँ,

ये उन्ही के रहमोकरम हैं यारो ,

कभी कभी अखबार में, दिखने लगा हूँ।।

बस थोड़ा सा, अपने मन को मारा,

थोड़ा आत्मा पे बोझ बढ़ाया है,

पर खफा खुद से भला क्यों हूँ,

खुद की नज़रों में ही तो गिरा हूँ,

महफ़िल में तो कद, अपना बढ़ाया है ।।

जो दावे करता है ये दिल ,

अपनी ख़लूसियत के दिन रात,

क्या नहीं चाहत थी इसे मशहूर होने की,

तो जो आज रौनकें हैं सर झुकाने से,

क्यों ये जिद बेवजह मगरूर होने की।।

आज जब हर रिश्ता हर व्यवहार,

सिर्फ व्यापार के तराजू पे टिका,

तो न कर अफसोस न दुखा दिल को,

जब यहां हर शख्स बिकाऊ है,

तो जो था वाजिब मोल तेरा,

तू भी तो है अब उस पे बिका ।।

इस मंडी में तो हर रोज़ ,

किरदार बदल जाता है,

आज जो बिकता है वो ,

कल खरीदार नजर आता है,

यहां अल्फ़ाज़ और हर्फ़ ही नहीं,

अहसास भी बिक जाते हैं,

जो दिल के साथ बेच देते जमीर अपना,

इस ऊंचाई पे बहुत देर तलक,

देखा है कि अक्सर वो टिक जाते हैं,

देखा है कि अक्सर वो टिक जाते हैं।। 



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