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Upama Darshan

Others

5.0  

Upama Darshan

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लैटरबाॅक्स

लैटरबाॅक्स

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मैं लाल लैटर बाक्स, आज हूँ गुमसुम खड़ा

मेरे चेहरे की खामोशी को किसी ने न पढ़ा

कुछ बरस पहले तक मेरा ही ज़माना था

चिट्ठियों से दिलों को जोड़ता फ़साना था


इत्र की खुशबू वाले ख़त मेरे दिल में समाते थे

एहसास मेरे महत्व का मुझे अनायास कराते थे

नियुक्ति पत्र, विवाह निमंत्रण सब मुझमें आते थे

खुशी से भरे संदेशे मेरे चेहरे की रौनक बढ़ाते थे


समय ने ली करवट औ जिंदगी की रफ़्तार तेज़ हुई

कूरियर, स्पीड पोस्ट आए, मेरी अब जरूरत न रही

मोबाइल हाथ में पाकर चिठ्ठियाँ सब भूल गए

कागज़ औ कलम सबके हाथों से अब छूट गए


मुझ से तो लोगों का नाता ही जैसे टूट गया

चिट्ठी लिखने का चलन ही जब से छूट गया

यदा कदा अब कुछ ग्रीटिंग कार्ड आते हैं

या भूले बिसरे कभी चंद ख़त आ जाते हैं


सावन का महीना ही मुझको अब भाता है

बारिश में धुल कर रंग मेरा निखर आता है

राखी से भरे लिफाफे मुझको बेहद भाते हैं

कुछ दिन को सही चेहरे पर मुस्कान लाते हैं


चंद एक लोगों से दुनिया में वज़ूद मेरा कायम है

बीते दिन याद कर मेरी आँखें रहती कुछ नम हैं

वक्त सदा किसी का एक सा नहीं रहता है

मेरा यह खामोश चेहरा सबसे यह कहता है


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