क्या वही मर्द कहलाता है?
क्या वही मर्द कहलाता है?
अपने जज्बातों को जो छुपाता है
छलकते आँसुओं को भी पी जाता है
अपने लिए कभी ना सोचकर
सिर्फ परिवार की जिम्मेदारियाँ
उठाता है
क्या वही मर्द कहलाता है?
तुम्हें सौम्य नहीं है बनना
अंधेरे से कभी नहीं है डरना
हर मुश्किल से डट कर है लड़ना
और इस समाज के आगे कभी
कमजोर नहीं पड़ना
जो इस दबाव में रहकर
अपना जीवन निर्वाह कर पाता है
क्या वही मर्द कहलाता है?
चाहे वो गुलाबी हो या पीला
उसपर भी हर रंग फबता है।
दुनिया और परिवार को
संभालते संभालते
उसका शरीर भी थकता है।
चाहे वो कितना भी बड़ा हो
उसे भी तो चाहिए पापा से
जादू की झप्पी
बहन से खूब सारा लाड़
और माँ की गोद में ममतामई
थपकी।
उसके मन की बात को वह भी
शब्दों में पिरोना चाहता है
जब जब आए संकट की घड़ी
उसको भी रोना आता है।
कामयाबियाँ हासिल करके भी
उसका दिल बच्चा ही होता है
जिसको दर्द होता है, वही तो
मर्द होता है।
ज़रूरी नहीं कि उसका अहम
ही उसकी शान हो,
सिर्फ लड़की की इज़्ज़त बचाने में ही
उसका मान हो
हो सकता है वो बीवी को
शाम की चाय बनाकर पिलाता हो
माँ के थक जाने पर,
घर का राशन भी ख़रीद लाता हो।
जो देश की सीमा पर रहकर
परिवार की यादें संजो कर सोता है,
जिसको दर्द होता है, वही मर्द होता है।
वह जल्दी बड़ा होने के बोझ के नीचे
बड़ा तो हो जाता है,
सही और ग़लत का फर्क
उसको भी बाद में समझ आता है।
इसलिए मत लादो उसपर
अपनी उम्मीदों का सारा बोझ,
लड़के रोते नहीं
अरे अब तो बदलो यह सोच।
लड़का भी सहनशील, मृदु,
संवेदनशील
और भावुक होता है,
क्योंकि जिसको दर्द होता है
असल में वही मर्द होता है।
