क्या होगा देश का
क्या होगा देश का
सुबह सवेरे जब मैं, अख़बार खोलता,
"क्या होगा देश का", ख़ुद से बोलता!
फिर मास्क को रख के नाक के नीचे,
देश के बारे में सोचता मैं जबड़े भींचे!
"कितना भ्रष्टाचार, देश में फैला हुआ,
भारत माँ का आँचल देखो मैला हुआ!
हर कर्मचारी, रिश्वत की जुगत में बैठा,
मुँह खोल मांगे कभी बर्फ़ी, कभी पेठा!
स्कूल भी डोनेशन माँगते है मुँह खोल,
पैसे से रहे हैं ये सब विद्या को यूँ तौल!
महँगाई भी मुँह खोल रही, सुरसा सम,
हर चीज़ के दाम बढ़ें, नहीं होते, कम!
ऑफिस में है, चापलूसों का बोलबाला,
चाबी चोर को दे रहा धन का रखवाला!"
ये सब सोचते हुए मैं अख़बार पढ़ रहा,
कि एक बाईकवाला मेरे हत्थे चढ़ गया!
"मिस्टर! देखिये आपने सिग्नल तोड़ा है,
चालान के सिवाय तो रास्ता न छोड़ा है!
तो इसीलिए हज़ार की पर्ची बना रहा हूँ,
या दो कुछ, कि, मामला ये दबा रहा हूँ!"
इस तरह दिन की मेरी शुरुआत हो गई,
इस तरह लक्ष्मी माँ से मुलाक़ात हो गई!
जैसे ही लक्ष्मी का जेब में आगमन हुआ,
भ्रष्टाचार का देश से फ़ौरन, गमन हुआ!
फ़ौरन ये देश तरक्की करता हुआ दिखा,
बे-काम का ईमान देखो पैसों में है बिका!
आज बिकते हुए दिखा, यहाँ ईमान देखो,
कल आएगा बिकने यहाँ पर इंसान देखो!
बाज़ार में ईमान दरियाफ़्त किया जा रहा,
शायद माल कम होने से नहीं आ पा रहा!