कविता
कविता

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उतारना था कागज पर
बातों को
मुलाकातों को
ख्वाबों को
जज़्बातों को
पर शब्द जैसे खो गये हैं
दवात में रखी हुई थी स्याही,
अब सूख गई है
धूल की मोटी पर्त्
जम गई है डायरी पर
सालों बीत गए
मेंने उसको हाथ नहीं लगाया था
जब से गयी हो तुम
मैं कोई कविता नहीं लिख पाया
पथराई इन आँखों को
इंतजार है
कब तू आए
और मैं फिर लिखुं
तुझ पर एक कविता।