STORYMIRROR

Sachin Kapoor

Others

2  

Sachin Kapoor

Others

कविता

कविता

1 min
168


उतारना था कागज पर

बातों को 

मुलाकातों को

ख्वाबों को

जज़्बातों को

पर शब्द जैसे खो गये हैं 

दवात में रखी हुई थी स्याही, 

अब सूख गई है 

धूल की मोटी पर्त्

जम गई है डायरी पर

सालों बीत गए 

मेंने उसको हाथ नहीं लगाया था

जब से गयी हो तुम 

मैं कोई कविता नहीं लिख पाया

पथराई इन आँखों को 

इंतजार है 

कब तू आए 

और मैं फिर लिखुं

तुझ पर एक कविता। 



Rate this content
Log in