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Namrata Saran

Others

4  

Namrata Saran

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कविता और मैं

कविता और मैं

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मैं जब शब्दों को 

इकठ्ठा कर

संजो संजो कर

सोच विचार कर

लिखती हूँ, तब

बहुत सुंदर 

कविता बनती है...

श्रृंगार की, प्रेम की

जीवन की ,प्राण की.... 

या,

पाती हूँ जब 

स्वयं को एकाकी 

तब अवलम्ब 

बन उभरती है और,

बन जाती है साथी 

देती है संबल 

ले जाती है 

स्वप्निल संसार में ,


किंतु जब ,

जज़्बातों की स्याही

शब्द बन

खुद ब खुद

पन्नों पर

उतरने लगती है

संभाले नही संभलती

संवारें नही सवंरती

तब ,

शब्द खुद चलते है

खुद गिरते है,उठते है

मेरा उनपर कोई

नियन्त्रण नही रहता...

लाख मना करने पर भी

नही रुकते ,और

उड़ेल देते है पन्नों पर

दर्द का सैलाब...

मैं बस देखती रह जाती हूँ....

पन्नों पर तड़पते

सिसकते , कराहते

ज़ख्मी शब्दों को...

तब शायद ,

मैं कविता को नही 

कविता लिखती है, 

मुझे .....।



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