कृतज्ञता
कृतज्ञता
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मनुष्य जो इतराता है अपनी कामयाबियों पर
शायद भूल जाता है कि कितनों पर आश्रित है वो
ये सफलता उसकी नहीं केवल योगदान है निरंतर किसी और का भी
कुदरत देती रही हवा उसे हर पल सांसो के लिए
नदिया निर्मल जल बांटती रहीं सदा
धरती हर मौसम में उसके
अन्न के भंडार भरती रही
कब रूक सोचा मानव तूने
आश्रय मिला है तुझे हर कदम पे
फिर इतना अहं किस लिए है
कभी तो कृतज्ञ हो कुदरत के।
