कल्पना सागर
कल्पना सागर
मेरी कल्पना का सागर
कभी उधेड़बुन का जल प्रपात बनकर,
उकेरता है आयुष के कैनवास पर,
कुछ आकृतियाँ भविष्य के चिलमन से,
और कुछ खींच लाता है कलाकृतियाँ,
अतीत के आगोश से!
मेरी कल्पना का सागर,
कुछ भविष्य के सुनहरे सपनों से,
कुछ अतीत के ज़ख़्म, मिले जो अपनों से,
भरता है रंग वर्तमान तूलिका में,
और चित्रित करता है भावनाओं की कृतियाँ,
कुछ भाव हर्ष और उन्माद के,
कुछ भय और विषाद के!
मेरी कल्पना का सागर,
लेता है हिलोरें ज्वार भाटा समान,
और समा लेता है अनंत आकाश को भी,
पक्षी की आँख में एक बिंदु के समान,
और अपने असीम भावों की अभिव्यक्ति से,
करता है नियंत्रित जीवन संतुलन की कमान!
