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Kusum Joshi

Others

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कलम के प्रश्न

कलम के प्रश्न

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एक दिन कलम ने मेरी,

मुझसे प्रश्न व्यंग्यमय पूछा,

क्यों लिखती हो काव्य ,

नहीं क्या काम तुम्हें जीवन में दूजा।


आज तलक ना बदला जग ये,

शब्दों की आवाज़ से,

बड़े-बड़े से सूरमाओं के,

व्यर्थ लिखे जज़्बात से।


लिखा किसी ने देश दशा पर,

कुरीति पे कुछ ने प्रहार किया,

पढ़कर भूला जिन्हें समाज,

क्या बदला जो कुछ ने याद किया।


इससे अच्छा वो भी जीते,

जीवन मस्ती में रमकर,

नहीं जवानी खोती उनकी,

रोष और चिंता में थमकर।


अब तुम चलते उसी राह पर,

तुमको क्या मिल जाएगा,

एक दिन ये काव्य तुम्हारा भी,

किताबों में बंद हो जाएगा।


इससे अच्छा छोड़ो ये सब ,

जीवन आनंद चुनो तुम भी,

ना बदल सकता ये समाज कभी,

अब खुद को बदल चलो तुम ही।


सुनकर प्रश्न कलम के पत्युत,

व्यंग्य कुटिल से भावों को,

उत्तर मैंने दिया कि,

मैं क्यों लिखती हूँ कविताओं को।


काम बहुत हैं जीवन मे,

मेरे भी सपने बहुत बड़े,

मगर कविता सारथी मेरी,

बंधन ना जो मन जकड़े।


इन कविताओं के माध्यम से मैं,

आवाज एक बन पाती हूँ,

और खामोशी के बाज़ार में

चीत्कार एक पहुंचाती हूँ।


इच्छा नहीं कि मैं बदलूँ,

ये समाज और ये जग सारा,

या मेरी कविताएं कभी,

बन जाएं प्रज्वलित कोई नारा।


ये बात जानती हूँ मैं भी की,

एक भूल इन्हें जग जाएगा,

और याद रखेगा भी तो क्या,

इनसे बदल ना कोई पाएगा।


पर फिर भी मैं लिखती हूँ कविता,

बस एक ही इच्छा यह रखकर,

की कोई लिखे कविता अपनी,

मेरी इन कविताओं को पढ़कर।


जैसे मुझको मिली प्रेरणा,

अन्य कवियों की गाथा से,

सीखा मैंने ख़ुद से लड़ना,

और स्वचरित्र कि बाधा से।


ऐसे हो मेरे शब्दों से,

यदि एक भी मन जग पाएगा,

उस दिन मेरे काव्य सृजन का,

उद्देश्य पूर्ण हो जाएगा।।



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