किसी औऱ की थी परछाई...!
किसी औऱ की थी परछाई...!
खुली आँखों से भी वो
मुझे देख नहीं पाई....
पहना था मैं उसकी पसंद का
शर्ट, पैंट,टैन कलर का शूज
औऱ उसकी फेवरेट टाई....
खुली आँखों से भी वो
मुझे देख नहीं पाई....!
क्या कहूं उसे
बेवफा,बेशरम,बेहया या हरजाई....
यही सोच-सोचकर
मुझे सारी रात नींद
नहीं आई....
सारे वादे फरेबी,सारी कसमें
झूठी निकली
जो भी थी उसने खाई....
खुली आँखों से भी वो
मुझे देख नहीं पाई....!
मुझे समझने में थोड़ी देर लगी
मगर बात समझ में आई....
अब वो मेरी नहीं रही
किसी औऱ की थी परछाई....
उसे समझने में
मैंने बड़ी देर लगाई....
वफ़ा की याद दिलाती
मुझे हर रोज
उसकी बेवफाई....
खुली आँखों से भी वो
मुझे देख नहीं पाई....!