ख्वाब
ख्वाब


कुछ ख्वाब बुन रही हूँ अभी,
बँद आँखो से ही सही,
पर कुछ ख्वाब बुन रही हूँ अभी
कुछ शोर है, कोई परिचित सी आहट हैं
पर तोड़ सके कोई मेरे ख्वाब को,
ऐसी कहाँ किसी की हिमाकत है,
कुछ कहानियाँ सच है, कुछ मन गढ़ंत है,
कही पथरीले रास्ते, कही कच्ची सड़क है,
पर रोक सके कोई मेरे सफ़र को,
उसके लिए ये कठिनाइयां बहुत कम हैं,
कुछ बातों से शायद अभी अनजान हूँ,
और माना दुनियादारी की कम पहचान हैं
पर देख रही हूँ जो मैं ख्वाब अभी,
वो इस बनावटी दुनिया के उस पार हैं।
और जब पंख मिले चुके है मुझें अपनी शर्तों पे,
इन्हें खोल गगन में उड़ी नहीं तो
मेरी आज़दी पर दित्कार हैं।
हाँ,कुछ ख्वाब बुन रही हूँ अभी,
बँद आँखो से ही सही,
पर कुछ ख्वाब बुन रही हूँ अभी
क्युकी मेरे सपनों से ही अब मेरी पहचान हैं।