STORYMIRROR

खुद से मुलाक़ात

खुद से मुलाक़ात

1 min
327


हाथों में कलम लिये जाने क्या सोचते हैं

चाहते तो हैं कि उतार दें मन की तस्वीर कागज़ पे

पर शब्द हमसे कतराते हैं

हम अपने मन को समझने से डरते हैं


झूठे दिलासों के पीछे छुपाई हैं कुछ बातें

बातों के शोर में छुपायी हैं सिसकियों की आवाज़ें

उन दिलासों में, उस शोर में खुद को खो चुके हैं

अब खुद से मिल नहीं पाते, हम जाने कहाँ कहाँ भटकते हैं

हाथों में कलम लिये जाने क्या सोचते हैं


कभी किसी मोड़ पे फिर खुद से मुलाक़ात होगी

खुद को माफ़ कर पाये तो फिर से शुरुआत होगी

इसी उम्मीद के संग हर क़दम चलते हैं

हाथों में कलम लिये जाने क्या सोचते हैं


Rate this content
Log in