खतरे में चौथा स्तम्भ
खतरे में चौथा स्तम्भ
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आज लोकतंत्र हमारा खतरे में,
देश में अजीब विडम्बना छाई है,
जब भेद खुल जाए इन जुर्मों के
जाने किस -किस की,
जान जोखिम में हो जाए I
कई पत्रकारों ने,
कीमत इसकी चुकाई है,
राज खोल देश के सामने,
जान अपनी गवाई है I
जीवन करते अपना अर्पण,
अदालतों के लगाते चक्कर हैं,
आज पत्रकारिता ही हमें
अभिव्यक्ति के खतरों का,
एहसास हमें कराता हैं I
जब दो समुदायों के बीच,
नफरत फैल जाती है,
तब उन ख़बरों से,
वह अवगत हमें कराता है,
आज खतरे है लोकतंत्र
बचाने का सोचो कोई मंत्र I
