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vijay laxmi Bhatt Sharma

Others

3.2  

vijay laxmi Bhatt Sharma

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खोलो द्वार

खोलो द्वार

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शशी की उज्जवल किरणें

मदमाती झूमती खेलती यूँ

निशा संग करती अठखेलियाँ

बोलती खोलो दिल के द्वार,


उनिंदी पलकों से वृक्ष झूम रहे

कौन है मौन आज छुप छुप देख रहा

मन की आँखों से हिर्दय मे झाँक

बोलता खोलो दिल के द्वार,


पूर्ण चन्द्र की छटा निराली चहुँ ओर

आप ही बातें कर आप ही है सुन रहा

मन ही मन मंद मंद मुस्करा रहा आज

फिर कहता खोलो दिल के द्वार,


प्रेम मग्न हो है समग्र संसार सोता 

स्वच्छ चाँदनी बिखरी शान्त निशा

कौन रुकता फिर रवि के आने तक

कहता फिर खोलो दिल के द्वार,


खिली वसुंधरा छटा निराली 

नभ बेचैन छूने को गालों की लाली

प्रकृति मौन विस्मृत देखती रहती

कहती देर न कर खोलो दिल के द्वार।



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