खो रही हैं बोलियाँ
खो रही हैं बोलियाँ
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अजीब सा कलरव
भागा-दौड़ी की कश्मकश
न जाने कैसी बेचैनियां।
खो रही हैं बोलियां
नहीं हैं अब गर्म-जोशियाँ।
नन्हों के हाथ में मोबाइल
माँ-पिता व्यस्त कर्म चक्रव्यूह में
नहीं रही अब गोदियाँ।
नहीं रही अब बोलियां
नहीं सुनाता कोई लोरियां।
एक ही कमरा, एक ही पलंग
चैटिंग में मस्त युगल
बढ़ रही हैं दूरियां।
नहीं रही अब बोलियां
नहीं रही गलबहियाँ।
समाज से कटे, भटके लोग
नैतिकता का भी भान नहीं
अजब-गजब मजबूरियां।
नहीं रही अब बोलियां
बढ़ रहीं तन्हाइयां।