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Jyotiramai Pant

Others

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Jyotiramai Pant

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कहमुकरियां

कहमुकरियां

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मुड़ मुड़ कर वो है फिर आया

आकर मुझ को बहुत सताया

जा नहीं सकती घर से बाहर

क्या सखि साजन? नहीं शीत लहर।


आकर मुझको ऐसे घेरे

राह न सूझे मन भटके रे

नज़रें हो जाती ज्यों कुंद

क्या सखि साजन? नहीं री धुंध।


मुझसे लिपट - लिपट जब जाए

उसे छोड़ फिर उठा न जाए

सारा दिन रहती अलसाई

क्या सखि साजन? नहीं रजाई।


मुड़ मुड़ कर वह फिर आ जाए

तन मन रोमांचित हो जाए

आके खोले द्वार किवाड़ा

क्या सखि साजन? नहीं री जाड़ा।


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