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Er. Pashupati Nath Prasad

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Er. Pashupati Nath Prasad

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खिचड़ी का रिवाज

खिचड़ी का रिवाज

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शनिवार का दिन ज्यों आता ,

खिचड़ी पूरा घर है खाता ,

वर्षों से था यह रिवाज ,

इस पर सब करते थे नाज ।


मेरी पत्नि है अनजान ,

नहीं किया है घर का काम ,

माँ ने उसे विधि समझाई ,

इस बार वह खिचड़ी बनाई ।


नमक चीनी में फर्क न पाई ,

चीनी डाल खिचड़ी पकाई ,

खाने बैठी पहले माँ ,

खाते मुख से निकला हाय !


खिचड़ी है या खीर बहू !

अब तुझको मैं क्या कहूँ ,

वर्षों से था जो रिवाज ,

उसको कर दी है तू नाश ।


इस तरह से टूटा रिवाज,

जिस पर घर भर करता नाज ,

अत: बहूओं जो अनजान ,

पाकशाला का सिखो ज्ञान ।।



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