खिचड़ी का रिवाज
खिचड़ी का रिवाज
शनिवार का दिन ज्यों आता ,
खिचड़ी पूरा घर है खाता ,
वर्षों से था यह रिवाज ,
इस पर सब करते थे नाज ।
मेरी पत्नि है अनजान ,
नहीं किया है घर का काम ,
माँ ने उसे विधि समझाई ,
इस बार वह खिचड़ी बनाई ।
नमक चीनी में फर्क न पाई ,
चीनी डाल खिचड़ी पकाई ,
खाने बैठी पहले माँ ,
खाते मुख से निकला हाय !
खिचड़ी है या खीर बहू !
अब तुझको मैं क्या कहूँ ,
वर्षों से था जो रिवाज ,
उसको कर दी है तू नाश ।
इस तरह से टूटा रिवाज,
जिस पर घर भर करता नाज ,
अत: बहूओं जो अनजान ,
पाकशाला का सिखो ज्ञान ।।
