खेत खलिहान
खेत खलिहान
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छूट रही है गाँव की गलियाँ,
शहरों का रूप लेते हुए।
खेत खलिहान चौपाल सब,
विलुप्ति की कगार पर।
ठंडक मिट्टी के घड़े की,
मिलती बस स्वप्नों की
मज़ार पर।
भोलेपन की संस्कृति,
जो थी गाँव की शान।
चतुरता ले उड़ी,
गाँव का अभिमान।
अपनेपन की परंपरा,
रिश्तों का सम्मान।
लोभ लालच सब खा गए,
मिटा दिया स्वाभिमान।
प्रफुल्लित मन पारदर्शी
जीवन,
शान्ति बिखरे चारों ओर।
शहरों की इस भागदौड़ से,
चले गाँव की ओर।