कहाँ हैं
कहाँ हैं
इन स्याह सी रातों में ये हर्फ़ दिखते कहाँ हैं,
बेईमान दुनिया में ईमानदार बिकते कहाँ हैं?
करते हैं गलतियाँ बहुत सी नादानी में 'क़ैस',
पर हम तो उन गलतियों से सीखते कहाँ हैं?
बहुत से उबलते दर्द छुपे हैं सीने में सभी के,
होठों को सीया है, अब होंठ चीखते कहाँ हैं?
सियासत ने दबाया है सच्चाई को गुनाह बता,
क़लमकार बिके यूँ कि सच लिखते कहाँ हैं?
वक़्त बेदर्द है उन घावों को छुपा देता है बस,
घाव जो सूखने को हैं, कि अब रिसते कहाँ हैं?
ये ज़िन्दगी तो अब ज़िन्दगी कहाँ रह गयी है,
इस तन्हा ज़िन्दगी से गायब, वो रिश्ते कहाँ हैं?
ज़िन्दगी में ग़मों के बोझ ने अब चूर कर दिया,
पहले से चूर इंसान मगर अब पीसते कहाँ हैं?
