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प्रियंका दुबे 'प्रबोधिनी'

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प्रियंका दुबे 'प्रबोधिनी'

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"के सिवन"(इसरो चीफ)

"के सिवन"(इसरो चीफ)

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भावुक हूँ ! 

कमजोर नहीं हूँ !

गिरूँगा, ऊठूँगा, चलूँगा

और फिर एक दिन

दौड़ूँगा भी !


एक खोज की थी

नानी ने, और मेरी

बूढ़ी दादी ने

जब मैं छोटा बच्चा था

जल से भरी थाली आँगन में

रख तुझको उतारा था

मैंने बुने सपने सलोने।


कुछ और बड़ा कर जाऊँगा

मैं बड़ा होकर ऐ ! चंदा

तुझसे इश़्क लड़ाऊँगा

करने को साकार स्वप्न मैं,

तरकीबों में जूट गया।


तुझसे मिलने की चाहत में

सब कुछ पीछे छूट गया

बाहें फैलाकर जैसे ही

दौड़ पड़ा तुझसे मिलने को,

पर विह्वलता बढ़ी हुई थी,

और तू मुझसे रूठ गया।


है कोई मलाल नहीं अब

तुझे करीब से देखा है

एक दिन तुझको पा जाऊँगा

तू मेरे जीवन की रेखा है

फिर आऊँगा दर पे तेरे,

तुझसे तेरा हाथ माँगने।


दिल में तेरे जगह बनाने,

और तुझी से साथ माँगने।

हाँ ! ऊड़ूँगा, और बढ़ूँगा

तुझे मना पाऊँ इस बार,

युक्ति फिर कुछ नई गढ़ूँगा।


मिलना न हो पाया पर

प्यार और बढ़ता गया है

और प्यास बढ़ती गई,

इश़्क सर चढ़ता गया।


रूठा-रूठा चाँद है मेरा,

मान मगर वो जायेगा

अगर प्यार है सच्चा मेरा,

खुद ही मिलने आयेगा।


और गले लगाकर अपने

आँसू खूब बहायेगा

मिलन की बेला ऐसी होगी,

दिल की सब कह जायेगा

प्रथम मिलन की अनकही,

बातें तू कह जायेगा।


यूँ नख़रे दिखलाया उसने

हाथ झटककर मेरा जिसने

कहा अभी न मिलना है.!

कुछ और तरकीब लगाओ,

फिर साथ तुम्हारे चलना है।


मैं मुस्काया और कहा फिर

हाँ ! हमको स्वीकार शर्त है

ख़्वाब मिलन का मरा नही, 

दिल में पल रहा अमर्त्य है

लेकरके उम्मीद नई फिर,

हाँ ! मैं मिलने आऊँगा।


नई-नई तरकीबो से,

तुमको खूब मनाऊँगा

तुम होगे बाहों में मेरे,

मैं बहुत इठलाऊँगा।


साक्षी पूरी दुनिया होगी,

अपना तुझे बनाऊँगा...

अभी साथ है देश हमारा,

पीठ पर रख हाथ मेरे।


उत्साहित करने को मुझको,

स्वयं प्रधान हैं, साथ मेरे...

रोऊँगा न सोऊँगा मैं,

फिर जोश नया भर जाऊँगा,

हाँ ! प्रियवर ये वादा मेरा,

मैं तुझसे मिलने आऊँगा।


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