कौन उफक के पार.....
कौन उफक के पार.....
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कौन उफक के पार
मुझे बेसाख्ता बुलाता है
किसका ये इशारा
मेरी बेताबियां बढ़ाता है
खो जाऊँ आसमां की
निस्सीम बाँहों में
कौन है जो मेरे दिल में
यह हौसला जगाता है !
दिल है बच्चा, जब भी
दुनिया की भीड़ से घबराता है
दौड़कर निसर्ग के
सीने से लिपट जाता है
इक बादल मेरी हस्ती पर
चुपके से बरस जाता है !
कभी भीगी-सी साँझ में
चंदा गगन पर इतराता है
उसका ये अंदाज मुझे
बेसाख्ता लुभाता है !
कभी नवोदित दिवाकर
अरुण रश्मि से रिझाता है
सुर्ख गुलाब विहँस
मेरा वजूद महकाता है !
मुझे तो कुदरत में ही
अपना आराध्य नजर आता है !