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Dr Baman Chandra Dixit

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Dr Baman Chandra Dixit

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काव्य कयास

काव्य कयास

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तराने तैर रहे थे, मेरी स्याही की रंगों में

कलियां मचल रही थी गमलों की अंगों में

मन की मंथन से मोतियाँ खोजने लगी

फ़साने गूँजने लगी, भौरों की संगों में।।


उंगलियों ने चाहा ज़ुल्मी जुल्फों को हटाना

भौंरे बोलने लगे, ज़रा ठहर जा हसीना

बैरी पवन भी और बहकी अन्दाज़ से

चुनरी उड़ा ले चली, चोली अनमना।।


सरकती चुनरी को संभालने की आदा

बायीं हथेली की कोई अनमना सा वादा

चुलबुली तितली कहे कलियों के कानों

जूही भी फिदा चम्पा चमेली भी फिदा।।


हया से हाल गालों का, गुलाब कहने लगे

नज़रें झुक सी गयीं, साँसे बहकने लगे

पुलक का एक झलक, होठों से गुप्तगु

दिलों की दास्ताँ सारी, आँखें भी कहने लगे।।


पवन अटक सा गया, जिगर के आस पास

बेफिकर होने लगे प्यासी निगाहों के आस

कलम जो था क़ैद उंगलियों के बीच मेरी

उकेरता फ़ज़ा में अल्फ़ाज़ों का क़यास।।



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