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काले बादल

काले बादल

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आज फिर से

मेघ काले नाग से

घिर-घिर हैं आने लगे।

कभी मुग्ध, कभी दग्ध

कभी भयावह, तो कभी नम्र

कभी देते आँखों को सुख

कभी तन को कर देते शीतल

कभी मन को पहुंचाते सुख।

कभी चंचल से बन,

कभी फुदकते, ईधर से ऊधर

कभी एक दूजे से बांध बंधन

एक-दुजे के पिछे चलते।


आज फिर से

मेघ काले नाग से

घिर-घिर हैं आने लगे।

कभी हँसते, कभी फुंकारते

कभी नाचते तो कभी थिरकते

कभी गाते तो कभी हुंकारते

कभी आगोश में अपने भर

चमकती दामिनी को दुलारते

कभी ईधर से ऊधर पानी से भरे

पानी के भार लदे ।


बोझ को खुशी-खुशी हैं ढोते

आज फिर से

मेघ काले नाग से

घिर-घिर हैं आने लगे।

कभी किसी को देख झूम पडते

कभी किसी को छोड के प्यासी

अपनी दिशा स्वयं बदल लेते

कभी विरां को गुलिस्तां बनाते

कभी बंजर में फूल खिलाते

धरा के साथ ठिठोली कर

मन को उसके धडका कर

छोड उसे आगे बढ जाते।


आज फिर से

मेघ काले नाग से

घिर-घिर हैं आने लगे।


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