कागज़ की नाव
कागज़ की नाव
कागज़ की दो नाव थी,
चार पल की उनकी कहानी थी
सफर में थोड़ा दूर चली थी,
मुलाकात भी उनकी रवानी थी
पानी का ज़ोर मद्धम सा था,
हवा के शोर में गुम सा था !!
कुछ शरारतें करती राह में
बढ़ी वो दोनों डालें बाँह में
मंज़िल की खबर तो दोनों को न थी
पर फिर इसकी परवाह भी किसको थी !!
जो अगर सोचा होता किनारे का
तो मज़ा अधूरा रह जाता सितारे का
वो सितारा जो रात में जगमाया था
जो उन दोनों को देख टिमटिमाया था !!
सफर तो ये लाजवाब सुहाना था
पर फिर कहानी के अंत को भी आना था !!
कुछ ज़ोर बढ़ा जब पानी का,
साथ छूटना तो फिर लाज़मी था
कागज़ की ही तो वो नाव थी,
इतनी सी ही उनकी ये एक कहानी थी !
