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Dr. Madhukar Rao Larokar

Others

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Dr. Madhukar Rao Larokar

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जो दूसरों को

जो दूसरों को

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जो दूसरों को, आँखें दिखाते हैं

खुद अपने गिरेबां में, उनने झांका नहीं।

तमाम सिलवटें, पड़ी हैं दामन में

दूसरों को दिखती, उनने देखा नहीं।

ग़लतियाँ दिखती, दूसरों की फ़कत

खुद कितने पाक साफ, हैं उनने माना नहीं।

नफ़रतें फैलाते और ज़हर ,उगलते ही


बीता जीवन, उनने जाना नहीं।

अब क्यूँ गुमसुम, सी है इंसानियत

किसने किया है, बेज़ार उनने सोचा नहीं।

कितनी मोहब्बते व भाईचारे से भरा है

ये जहाँ 'मधुर 'उनने किया नहीं।।



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