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Minal Aggarwal

Tragedy

4  

Minal Aggarwal

Tragedy

जिस्म की चादर

जिस्म की चादर

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जिस्म की चादर 

घिस रही है 

झीनी हो रही है 

कमजोर पड़ रही है 

इसके रंग उड़ रहे हैं 

यह झड़ रही है 


एक कपास के फूल की तरह ही 

यह एक चौड़ा रास्ता थी कभी 

अब तो उम्र की आखिरी पायदान पर 

एक पतली सी पगडंडी भर 

बनकर रह गई है 


जिस पर चलना भी मुश्किल 

प्रतीत हो रहा है लेकिन 

कोई अन्य विकल्प नहीं 

कितना भी संभल कर चल लूं पर 

कभी न कभी 

पांव तो अवश्य ही लड़खड़ायेंगे और 

मुझे नीचे की तरफ गिरायेंगे 


न जाने जहां मैं गिरूंगी 

वह एक कोमल घासफूस की 

बिछौने सी जगह होगी या 

कोई कांटो का झाड़ या 

कठोर भूमि या 

कोई गहरा गड्ढा या 

कोई खाई 

मैं कितनी चोट खाऊंगी 


इसका मुझे कोई अनुमान नहीं 

मैं जिंदा रहूंगी या 

मर जाऊंगी या 

कितने दुख उठाऊंगी 

कुछ भी कहना मेरे लिए 

संभव नहीं 

मेरे जीवन का होना 

या न होना या 

यह किस प्रकार गुजरेगा 

यह सब कुछ मेरे हाथ में नहीं है 

यह सब प्रभु की लीला है 

वह जो चाहेंगे वह होगा 


वह जो कुछ भी करें उसमें 

हम सबका भला ही होगा 

इस दुनिया में रहना नहीं हो 

पाया गर संभव 

किसी भी कारणवश तो 

प्रभु के चरणों में ही फिर 

अपना बसेरा होगा।


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