जिंदगी हो गई अखबार जैसी
जिंदगी हो गई अखबार जैसी
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जिंदगी हो गई है अखबार जैसी
पता ही नहीं चलता किस पन्ने से
शुरुआत करूँ
हर एक पन्ना खास तो होता है
लेकिन दुनिया भर की साज़िश
भी साथ होता है
जनाब मुख्य पृष्ठ का तो ऐसा हाल है
कहने को तो सब मुख्य ख़बरें
उसी में होती है
लेकिन कुल जमा जिंदगी का
जनाज़ा वही होती है
अब कवि हूं संकेतों में ही बोल पाऊंगा
पूरा लिखता तो अच्छा लेखक होता
कुछ बातें कहूँगा ,
साथ में वेदना - संवेदना
भाव और आपके विवेक पर छोडूंगा
अखबार के और जिंदगी के महत्वपूर्ण पन्ने
पर चलता हूं
जो कहने को तो अंतिम पन्ना होता है
लेकिन दूसरी सुबह का इंतजार
वही छिपा होता है
शायद उस पन्ने को कहते हैं -
चलते -चलते
लेकिन उसमें ही जिंदगी का बड़ा संदेश
छिपा होता है
वह मानो हमें कहता है
शुन्यता में विलीन होने से पहले
कुछ हँसते
कुछ रोते ..!!
चलते -चलते,
बस चलते रहने की
सब बंदिशों को छोड़कर
बस चलते रहने की !