जिंदगी और मेरी बहस
जिंदगी और मेरी बहस


जबसे हम दोनों में एक गुरूर हुआ
तबसे हमारे बीच ये बहस शुरू हुआ।
कहने लगी जिंदगी मैं हर बार
मौका मिले तो तेरे पास आती हूँ।
कितना प्यार है तुझसे मुझे
मैं यही तो जताती हूँ।
मैने भी कह दिया ऐ जिंदगी,
पढ़ जरा कैसी अपनी कहानी है।
तू जब भी मेरे पास आई है
मैंने कुछ ना कुछ दी कुर्बानी है
गुरूर आया मुझे तब मैने कहा
मैं भी साइंस टीचर हूँ
मेरे जैसा पढ़ा कर तो दिखा।
बड़ा खूबसूरत जवाब दिया जिंदगी ने
अरे! सबक सिखाती हूँ मैं जिंदगी का
पहले तू मेरे जैसा सिखा कर तो बता
जिंदगी ने पूछा आखिर
तुझे मौत से इतनी नफरत क्यों है
मैंने कहा क्योंकि मुझे
प्यार भी तुझसे बेशुमार है।
फिर क्या बहस खत्म हुई हमारी
जब मैंने आखिर में हार मान लिया
और साथ रहने लगे हम मिल जुल
तब जिंदगी ने मुझे पहचान दिया।