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manisha sahay

Others

5.0  

manisha sahay

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जिम्मेदारी

जिम्मेदारी

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पति का बटुआ, 

सँभाला मैने जब से, 

समझ आया बोझ जिंदगी का।


जिम्मेदारी बेहिसाब, 

सुकून के पल ढूंढे आज, 

कह ना पाए किसी से हाल।


राशन का बोझ, 

बढ़ती जाती महँगाई रोज, 

किसको सुनाएँ दुखड़ा।


पति का बटुआ, 

उठाता जाने कैसे बोझ इतने,

हँसता रहता है गम में।


स्कूल की फीस, 

माँ, पापा की दवाई, 

रिश्तेदारों की आवाजाई।


बहना की कॉलेज की पढ़ाई, 

टूटती छत की मरम्मत करवाई, 

उपर से त्योहारों की खर्चाई,


बीमा की पॉलिसी भरवाई, 

बिजली बिल भर आई, 

रोजाना का हिसाब लगाई। 


देखा बटुआ जब ,

आँखे मायूस भर आई, 

पति से कहा,नही कुछ बचा पाई।


बटुआ जेब में रख बोले पिया, 

कोई नही, क्यों बिखेरी ये उदासी, 

तेरे हाथों से तो इसने बरकत पायी।

 

तुम मेरी घरवाली हो, 

बटुआ नही ये जिम्मेदारी, 

तुमने बखूबी सँभाली है।



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