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VanyA V@idehi

Others

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VanyA V@idehi

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जीवन धारा

जीवन धारा

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महामृत्यु के आंचल में भी

जीवन की रेखाएं।

मानव मन की जिजीविषा ही

पुष्पित हो मुस्काए।


विविधि वर्जनाओं में चलता

रहता सर्जन क्रम है।

आस्थाओं का दीप प्रज्वलित

हरता तम विभ्रम है।

नित्य नवीन अंकुरित आशा

उत्साहित कर जाती,

कर्मठता पलती अभाव में

करती रहती श्रम है।


बहती रहती जीवन धारा,

तोड़ सभी बाधायें।

महामृत्यु के आंचल में भी

जीवन की रेखायें।


दु:ख के क्षण भी कभी कभी

हैं पहिचाने से लगते।

स्मृतियों के रेखांकन में

नये रंग हैं भरते।

मरुथल में भी धाराओं के

उत्स स्फुटित होते,

अश्रुपूर्ण नयनों में भी कुछ

नये स्वप्न हैं सजते।


विश्वासों से प्राणवान

होती जाती आशाये।

महाममृत्यु के आंचल में भी

जीवन की रेखायें।


संस्कृति की निर्ममता में भी

रहता छिपा सृजन है।

उल्लसित हृदय के स्पंदन में

होता दमित रुदन है।

नश्वरता का मान भंग

करतीं अखंड श्रद्धायें,

अनायास अधरों पर आती

गीतों की गुनगुन है।


आत्मतत्व के भाव बोध में

शान्ति सुधा सरसायें।

महामृत्यु के आंचल में भी

जीवन की रेखायें।


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