जीवन चक्र
जीवन चक्र
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नन्ही चिड़ियां दाना लेकर
खिलाने वास्ते ढूंढ रही है
इस डाल तो कभी उस डाल
फुदक-फुदक कर बैठ रही है।
घोंसलों मैं बैठे बच्चों को
चोंचों से खिलाती है
फिर दाना चुगने
फुर्र से उड़ जाती है।
दिनचर्या यही बना है
उषा काल से सांध्य बेला तक
मेहनत करती हरदम है
थक ना जाए तब तक।
पाल-पोस कर बच्चों को
नभ में उड़ना सिखलाती है
जब बच्चा उड़ना सीखे
फिर अपनों से बिछड़ जाती है।
जीवन चक्र का चलता है
कर्म सभी ही करते हैं
मानव खग को नित करना है
कार्य करते ही आगे बढ़ना है।