जीने की उमंग
जीने की उमंग
तुम्हारी चाहतों ने मुझे जन्म दिया
तुम्हारे नगमों ने मुझे पाला
तुम्हारी हसरतों में खेलती
तुम्हारे अफसानों ने जवां किया
और तुम्हारी बेरुखी ने तोड़ दिया।
पर जीने की उमंग लिए
तुम्हारी चाहतों में बने रहने के लिए
सजीव, सचेत माहौल में
दिलकश नज़ारों के मोह में
सतरंगी बहारों में जीना चाहती हूं।
अतः जिन नगमों ने मुझे पाला
उन्हें गुनगुनाते हुए
जिन अफसानों ने जवां किया
उन्हें पढ़ते-सुनते हुए
तुम्हारी बेरुखी का सबब खोजती हूं।
जिन चाहतों ने जन्मा उन्है चाहते
सुखद स्वपन साकार होते
सीधे संकल्पों को दोहराते
मैं तो पुनः पनपना चाहती हूं
मैं तो जीना चाहती हूं।
पूरे होते कालचक्र में
धूमकेतु बने घनचक्कर में
फिर से मिली जुली दुआओं में
तुम्हारी बेरुखी झुठलाते हुए
खुद के न होने को झुठलाती हूं।
दृढ़ नींव सा धीरज धरते
जीने की चाहत के रहते
तुम्हारे आते ही बचपन के पलटते
जिन हसरतों में खेली उसे खेलते
खेल के मैदान में उतरती हूं।
