इन्सान और जानवर
इन्सान और जानवर
वो बोलते नहीं मगर एहसास उनमें भी हैं,
कहते हैं जानवर जिसे कुछ खास उनमें भी हैं।
जीते हैं दुनिया में अपनी ना किसी को परेशान करते हैं,
ये तो इन्सानों की हरकत है जो इनका नुकसान करते हैं।
माँ की ममता मैंने एक दिन एक तश्वीर में देखी थी,
बच्चे के साथ जंगल में भटकी अकेली एक हाथी थी।
उसे डर था कि कहीं से कोई शिकारी ना आ जाए,
पहले देखी बच्चे को फिर देखी दाएं और बाएं।
खुद की आड़ में छिपाए बच्चे को लेकर जा रहीं थी,
अपनी जान से ज्यादा बच्चे की चिंता सता रही थी।
माँ बाप के जैसे ये भी खुद को करते न्योछावर है,
तो क्या हुआ अगर लोग कहते इन्हें जानवर हैं।
दोस्त जैसे एकजुट होते जब कोई शिकस्त होती हैं,
झुंड में करे शिकार जब इन्हें कोई जरूरत होती हैं।
यहाँ तो कुछ इन्सान भी जानवर कहें जाते हैं,
क्या जानवर सच में उनके जैसे ही पाए जाते हैं।
कुछ गुण वो जानवर से भी सीख ले तो अच्छा होगा,
खोये हुए इन्सानियत का नाम फिर से सच्चा होगा।
इन्सानों की पनाह छोड़कर लोग जानवर पालते हैं,
ईमानदारी है उनमें ये तो हम सभी जानते हैं।