इन चरागों के मुस्कुराने से
इन चरागों के मुस्कुराने से
गई रात बेचैनी सी रही, नींद लौट गई मुहाने से ,
मेरे ये नयन सोये ही नहीं मेरे खुद के सुलाने से !
इब कोई तो ज़रा इस ज़िन्दगी को भी समझाए ,
कि अब तो बाज़ आये मुझे रोज़- रोज़ रुलाने से !
कहकर हारे कि, मत जलाओ शजर हरा है अभी ,
अभी यह धुआँ बहुत देगा यूँ यकायक जलाने से !
उधर ज़िन्दगी बारहा मांगती रही वक़्त अपने लिए ,
और इधर मौत आई और चुपके से ले गई ठिकाने से !
सुकून चोरी का कैसे सारा इल्ज़ाम रख दें उन पर ,
जबकि मेरे सारे ख़्वाब चोरी हुए हैं मेरे ही सिरहाने से !
जब सोच है आपने लिया कि अब बदलनी हैं राहें ,
तब, सब्र का बांध टूट सकता है, यूँ रोज़ आने जाने से !
उस दौर में ना हमको दीवार थी ना कोई दर हासिल ,
जभी तो बेतहाशा लग से गए ,आकर यूँ तेरे शाने से !
अब हमारी तन्हाई और उनकी यादों का ही सहारा है ,
वरना हम तो उकता ही चुके थे इस बेलौस ज़माने से !
धीरे धीरे बोझ कुछ कम होगा जो दिल पर है पड़ा ,
रौशनी खूब जगमगाएगी इन चरागों के मुस्कुराने से !