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V. Aaradhyaa

Inspirational

4.5  

V. Aaradhyaa

Inspirational

इन चरागों के मुस्कुराने से

इन चरागों के मुस्कुराने से

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गई रात बेचैनी सी रही, नींद लौट गई मुहाने से ,

मेरे ये नयन सोये ही नहीं मेरे खुद के सुलाने से !


इब कोई तो ज़रा इस ज़िन्दगी को भी समझाए ,

कि अब तो बाज़ आये मुझे रोज़- रोज़ रुलाने से !


कहकर हारे कि, मत जलाओ शजर हरा है अभी ,

अभी यह धुआँ बहुत देगा यूँ यकायक जलाने से !


उधर ज़िन्दगी बारहा मांगती रही वक़्त अपने लिए ,

और इधर मौत आई और चुपके से ले गई ठिकाने से !


सुकून चोरी का कैसे सारा इल्ज़ाम रख दें उन पर ,

जबकि मेरे सारे ख़्वाब चोरी हुए हैं मेरे ही सिरहाने से !


जब सोच है आपने लिया कि अब बदलनी हैं राहें ,

तब, सब्र का बांध टूट सकता है, यूँ रोज़ आने जाने से !


उस दौर में ना हमको दीवार थी ना कोई दर हासिल ,

जभी तो बेतहाशा लग से गए ,आकर यूँ तेरे शाने से ! 


अब हमारी तन्हाई और उनकी यादों का ही सहारा है ,

वरना हम तो उकता ही चुके थे इस बेलौस ज़माने से !


धीरे धीरे बोझ कुछ कम होगा जो दिल पर है पड़ा ,

रौशनी खूब जगमगाएगी इन चरागों के मुस्कुराने से !





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