हुंकार
हुंकार
हम भी कुछ
लिखना
चाहते हैं !
कुछ बोलना
चाहते हैं !!
कुछ करने की
भी अभिलाषा
ह्रदय में हमने
पाल रखी है !
कहने को तो
हम कहते हैं
जो हमें भाता नहीं !
जो ह्रदय को
भेदता है
उसे कभी
रखता नहीं !!
पर हमारे
अरण्यरोदण
बेबसी के जालों में
उलझते रह गए !
हमें लगता है कि
हम मूक बधिरों
की टोलिओं में
सिमट कर रह गए !!
ना कोई सुनने
वाला है !
ना कोई पढ़ने
वाला है !!
किसे है वक्त
कुछ कहने की ?
लटकता मुंह पे
ताला है !!
जहाँ देखो
वहाँ निशब्द
हम यूँ ही पड़े हैं !
किन्तु हम आवाज़ के
इतने धनी हैं !!
आज हमारी
बातें भले
कानों में ना रेंगे !
कल कोई
गांडीवधारी
आ के रण में
हुंकार करके
महाभारत ना रच दें !!
