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हर पल सागर ओर गया

हर पल सागर ओर गया

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कतरा कतरा जैसे पानी, हर पल सागर ओर गया

तेरी सुधियों का हर लम्हा, हृदय मेरा झकझोर गया


जब जब तेरी बातें लेकर, संदल पवन चली आती

आँखे मेरी बन बदली, उस पल अमृत को बर्षाती

तब कहता यादों का सागर मुझको तो झकझोर गया

कतरा कतरा जैसे पानी, हर पल सागर ओर गया


सरसों संग बासंती फिजा ये रंग फैलाये कली कली

यौवन से भर जाती अवनी दुल्हन लगती गली गली

तब ऊषा की स्वर्णिम आभा पा मन तेरी ओर गया

कतरा कतरा जैसे पानी हर पल सागर ओर गया


ढलती सांझ की रक्त लालिमा ख्वाब सुनहरे ले आती

झिलमिल करती रजत थालिका नित्य विभावरी भर लाती

तब तब मेरी नींद पतंग को लेकर तू बन डोर गया

कतरा कतरा पानी जैसे हर पल सागर ओर गया


जगमग दीपों सी जलकर तुम खेले अनोखे खेले हो

पल्लव मुख पर ओस सी बूंदे मानो मोती गहने हो

पर प्रातः होली बालों संग रात दिवाली का दौर गया

कतरा कतरा पानी जैसे हर पल सागर ओर गया



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