हो जायेगी सबसे न्यारी
हो जायेगी सबसे न्यारी
नयन कोर क्यों नम हैं तेरी
किसकी याद है रे साकी...?
क्या टूटा है कोई प्याला
या उड़ गया कोई पाखी...?
क्यों मधुशाला में आकर तू
प्रीत की पींग बढ़ाती है..!
यहाँ है सबका आना-जाना
कोई नहीं यहाँ वासी है।
नेह के भ्रमजाल में पड़कर
क्यों खुद से रुसवाई करे....!
नहीं हुआ कोई यहाँ किसी का
क्यों झूठी दुहाई करे......!
निज तन-मन ही यहाँ है अपना
गैरों से मदद को कैसा तकना....!
तेरा मालिक गर साथ है तेरे
बाधाओं से क्यों फिर थकना...!
प्यार बाँट भरपूर तू साकी
प्रतिदान की लेकिन आस ना कर
कैसी मदिरा.....! कैसा प्याला.......!
इन पर तू विश्वास ना कर
प्यार में महज दान की महिमा
पाने की चाह ना रख प्यारी...!
तेरी मधुशाला की मदिरा
हो जायेगी सबसे न्यारी....।।
